+ ज्ञानी के देह में राग-द्वेष नहीं -
देहहँ उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ ।
देहहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥51॥
देहस्य उपरि परममुनिः द्वेषमपि करोति न रागम् ।
देहाद् येन विज्ञातः भिन्नः आत्मस्वभावः ॥५१॥
अन्वयार्थ : [परममुनिः देहस्य उपरि] महामुनि शरीर के ऊपर भी [रागमपि द्वेषम्] राग और द्वेष को [न करोति] नहीं करता [येन आत्मस्वभावः] जिसने निज-स्वभाव [देहात्] देह से [भिन्नः विज्ञातः] भिन्न जान लिया है ।
Meaning : Parama-Munis do not entertain love or hatred even towards their body ; they know that the Svabhava (real nature) of Atman is separate from the body.

  श्रीब्रह्मदेव