+ पुण्य-पाप मोक्ष के कारण -- अज्ञानी -
दंसण-णाण-चरित्तमउ जो णवि अप्पु मुणेइ ।
मोक्खहँ कारणु भणिवि जिय सो पर ताइँ करेइ ॥54॥
दर्शनज्ञानचारित्रमयं यः नैवात्मानं मनुते ।
मोक्षस्य कारणं भणित्वा जीव स परं ते करोति ॥५४॥
अन्वयार्थ : [यः दर्शनज्ञानचारित्रमयं] जो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रमयी [आत्मानं नैव मनुते] आत्मा को नहीं जानता, [स एव जीव] वही हे जीव; [ते मोक्षस्य कारणं] उन (पुण्य-पाप) को मोक्ष के कारण [भणित्वा करोति] जानकर करता है ।
Meaning : He who does not know Darshana (belief), Jnana (knowledge) and Charitra (conduct), the causes of Moksha, as the Swarupa (real nature) of Atman makes a distinction between good and bad deeds.

  श्रीब्रह्मदेव