
मं पुणु पुण्णइं भल्लाइँ णाणिय ताइँ भणंति ।
जीवहँ रज्जइँ देवि लहु दुक्खहँ जाइँ जणंति ॥57॥
मा पुनः पुण्यानि भद्राणि ज्ञानिनः तानि भणन्ति ।
जीवस्य राज्यानि दत्त्वा लघु दुःखानि यानि जनयन्ति ॥५७॥
अन्वयार्थ : [पुनः तानि पुण्यानि] फिर वे पुण्य भी [मा भद्राणि] अच्छे नहीं हैं, [यानि जीवस्य] जो जीव को [राज्यानि दत्त्वा] राज देकर [लघु दुःखानि] शीघ्र ही नरकादि दुःखों को [जनयंति] उपजाते हैं, [ज्ञानिनः] ऐसा ज्ञानी पुरुष [भणंति] कहते हैं ।
Meaning : That kind of 'Punya which having given the Jiva kingly pomp, etc., provides the circumstances of pain for him, is not good; so say the Jinani .
श्रीब्रह्मदेव