
देवहं सत्थहं मुणिवरहँ भत्तिए पुण्णु हवेइ ।
कम्म-क्खउ पुणु होइ णवि अज्जउ संति भणेइ ॥61॥
देवानां शास्त्राणां मुनिवराणां भक्त्या पुण्यं भवति ।
कर्मक्षयः पुनः भवति नैव आर्यः शान्ति भणति ॥६१॥
अन्वयार्थ : [देवानां शास्त्राणां मुनिवराणां] श्रीवीतरागदेव, द्वादशांग शास्त्र और दिगम्बर साधुओं की [भक्त्या] भक्ति करने से [पुण्यं भवति] पुण्य होता है, [पुनः] और [कर्मक्षयः] कर्मों का क्षय [नैव भवति] नहीं होता, ऐसा [आर्यः शांतिः] शांति नाम आर्य [भणति] कहते हैं ।
Meaning : By the Bhakti of Deva , Guru and Shastra Punya-bandha takes place, but it does not cause Moksha ; great Sants have said so.
श्रीब्रह्मदेव