+ दान से भोग, तप से इंद्रत्व, ज्ञान से मोक्ष -
दाणिं लब्भइ भोउ पर इंदत्तणु वि तवेण ।
जम्मण-मरण-विवज्जियउ पउ लब्भइ णाणेण ॥72॥
दानेन लभ्यते भोगः परं इन्द्रत्वमपि तपसा ।
जन्ममरणविवर्जितं पदं लभ्यते ज्ञानेन ॥७२॥
अन्वयार्थ : [दानेन परं भोगः] दान से नियम से (पाँच इंद्रियों के) भोग [लभ्यते] प्राप्त होते हैं, [अपि तपसा] और तप से [इंद्रत्वम्] इंद्रत्व मिलता है, तथा [ज्ञानेन] (वीतराग स्व-संवेदन) ज्ञान से [जन्ममरणविवर्जितं] जन्म-मरण से रहित [पदं लभ्यते] मोक्ष पद मिलता है ।
Meaning : By doing Dana (charity), one gets Bhogas (various enjoyments); by conquering one's senses or practising Tapa (asceticism), one becomes an Indra of Svaraga (heaven); but by means of Jnana (knowledge) one becomes free from births and deaths.

  श्रीब्रह्मदेव