
बुज्झइ सत्थइँ तउ चरइ पर परमत्थु ण वेइ ।
ताव ण मुंचइ जाम णवि इहु परमत्थु मुणेइ ॥82॥
बुध्यते शास्त्राणि तपः चरति परं परमार्थं न वेत्ति ।
तावत् न मुच्यते यावत् नैव एनं परमार्थं मनुते ॥८२॥
अन्वयार्थ : [शास्त्राणि] शास्त्रों को [बुध्यते] जानता है, [तपः चरति] और तपस्या करता है, [परं] लेकिन [परमार्थं] परमात्मा को [न वेत्ति] नहीं जानता है, [यावत्] और जबतक [एवं] पूर्व कहे हुए [परमार्थं] परमात्मा को [नैव मनुते] नहीं जानता, [तावत्] तबतक [न मुच्यते] नहीं मुक्त होता है ।
Meaning : One who understands the Shastras and practises TapashCharan but who does not know the Parmartha, cannot destroy his Karmas, and, consequently, cannot obtain Moksha.
श्रीब्रह्मदेव