+ शास्त्र-पढ़ने का प्रयोजन विकल्प-रहितता -
सत्थु पढंतु वि होइ जडु जो ण हणेइ वियप्पु ।
देहि वसंतु वि णिम्मलउ णवि मण्णइ परमप्पु ॥83॥
शास्त्रं पठन्नपि भवति जडः यः न हन्ति विकल्पम् ।
देहे वसन्तमपि निर्मलं नैव मन्यते परमात्मानम् ॥८३॥
अन्वयार्थ : [यः] जो [शास्त्रं] शास्त्र को [पठन्नपि] पढ़ता हुआ भी [विकल्पम्] विकल्प को [न] [हंति] नहीं दूर करता, वह [जडो भवति] मूर्ख है, वह [देहे] शरीर में [वसंतमपि] रहते हुए भी [निर्मलं परमात्मानम्] निर्मल परमात्मा को [नैव मन्यते] नहीं जानता ।
Meaning : One who having read the Shastras, does not give up Vikalpa (unsteadiness of mind), is a fool and does not know the Nirmal (faultless) and Shuddha (pure) Parmatman who dwells in all souls.

  श्रीब्रह्मदेव