
मोक्खु जि साहिउ जिणवरहिँ छंडिवि बहु-विहु रज्जु ।
भिक्ख-भरोडा जीव तुहुँ करहि ण अप्पउ कज्जु ॥118॥
मोक्षः एव साधितः जिनवरैः त्यक्त्वा बहुविधं राज्यम् ।
भिक्षाभोजन जीव त्वं करोषि न आत्मीयं कार्यम् ॥११८॥
अन्वयार्थ : [जिनवरैः] जिनेश्वरदेव ने [बहुविधं] अनेक प्रकार का [राज्यम्] राज्य का वैभव [त्यक्त्वा] छोड़कर [मोक्ष एव साधितः] मोक्ष को ही साधा, परंतु [जीव] हे जीव, [भिक्षाभोजन त्वं] भीक्षा से भोजन करनेवाला तू [आत्मीयं कार्यम्] अपने आत्मा का कल्याण भी [न करोषि] नहीं करता ।
Meaning : Shri Jinendra Bhagwan left all the pomp and glory of the earthly kings to obtain Moksha , but thou who fillest thy stomach by begging makest no effort to obtain Moksha.
श्रीब्रह्मदेव