+ संसार में सिर्फ दुःख, मोक्ष को जा । -
पावहि दुक्खु महंतु तुहँ जिय संसारि भमंतु ।
अट्ठ वि कम्मइँ णिद्दलिवि वच्चहि मुक्खु महंतु ॥119॥
प्राप्नोषि दुःखं महत् त्वं जीव संसारे भ्रमन् ।
अष्टापि कर्माणि निर्दल्य व्रज मोक्षं महान्तम् ॥११९॥
अन्वयार्थ : [जीव] हे जीव, [त्वं संसारे] तू संसार में [भ्रमन्] भटकता हुआ [महद् दुःखं प्राप्नोषि] महान् दुःख पावेगा, इसलिए [अष्टापि कर्माणि] (ज्ञानावरणादि) आठों ही कर्मों को [निर्दल्य] नाश कर, [महांतम् मोक्षं व्रज] सबमें श्रेष्ठ मोक्ष को जा ।
Meaning : By wandering about in the Samsara, thou hast suffered all sorts of terrible pains and miseries; thou shouldst now destroy the eight kinds of Karmas, to obtain the Parma-Pada (highest status), that is, Moksha.

  श्रीब्रह्मदेव