
उपयोगो विनिर्दिष्टस्तत्र लक्षणमात्मन: ।
द्वि-विधो दर्शन-ज्ञान-प्रभेदेन जिनाधिपै: ॥6॥
अन्वयार्थ : तत्र जिनाधिपै: आत्मन: लक्षणं उपयोग: विनिर्दिष्ट: । दर्शनज्ञान-प्रभेदेन द्विविध: ।
जीव एवं अजीव इन दो में से आत्मा का लक्षण जिनेन्द्रदेव ने उपयोग कहा है । वह उपयोग दर्शन एवं ज्ञान के भेद से दो प्रकार का है ।