
उदेति केवलज्ञानं तथा केवलदर्शनम् ।
कर्मण: क्षयत: सर्वं क्षयोपशमत: परम् ॥10॥
अन्वयार्थ : केवलज्ञानं तथा केवलदर्शनं कर्मण: क्षयत: उदेति । परं सर्वं कर्मण: क्षयोपशमत: ।
केवलदर्शन तथा केवलज्ञान मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण एवं अंतराय कर्मों के क्षय से उदित होते हैं । शेष कर्मों के क्षयोपशम से प्रगट होते हैं ।