+ दर्शन और ज्ञान की उत्पत्ति का क्रम -
यौगपद्येन जायेते केवलज्ञान-दर्शने ।
क्रमेण दर्शनं ज्ञानं परं नि:शेषमात्मन: ॥11॥
अन्वयार्थ : आत्मन: केवलज्ञान-दर्शने यौगपद्येन जायेते । नि:शेषं परं दर्शनं ज्ञानं क्रमेण (जायेते)
आत्मा के केवलज्ञान ओैर केवलदर्शन (ये दो उपयोग) युगपत् (एकसाथ) प्रगट होते हैं । शेष सब दर्शन (चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन ये तीन दर्शन) ज्ञान (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान एवं विभंगज्ञान ये सात ज्ञान) क्रम से (उदय को प्राप्त होते हैं अर्थात् प्रगट) होते हैं ।