
वस्त्वन्यथापरिच्छेदो ज्ञाने संपद्यते यत: ।
तन्मिथ्यात्वं मतं सद्भि: कर्मारामोदयोदकम् ॥13॥
अन्वयार्थ : यत: ज्ञाने वस्तु-अन्यथा-परिच्छेद: संपद्यते तत् मिथ्यात्वं सद्भि: मतं । तत् कर्मारामोदयोदकं ।
जिसके कारण ज्ञान में वस्तु की अन्यथा/विपरीत जानकारी होती है, उसको सत्पुरुषों ने मिथ्यात्व माना है । वह मिथ्यात्व कर्मरूपी बगीचे को उगाने के लिये जल के समान है ।