+ मिथ्याज्ञान और सम्यग्ज्ञान के कारण -
मिथ्याज्ञानं मतं तत्र मिथ्यात्वसमवायत: ।
सम्यग्ज्ञानं पुनर्जैनै: सम्यक्त्वसमवायत: ॥12॥
अन्वयार्थ : तत्र (ज्ञानोपयोगे) मिथ्यात्वसमवायत: मिथ्याज्ञानं (भवति), पुन: सम्यक्त्वसम वायत: सम्यग्ज्ञानं (भवति इत्थं) जैनै: मतम् ।
जैनदर्शन में ज्ञान को मिथ्यात्व के निमित्त से मिथ्याज्ञान और सम्यक्त्व के निमित्त से सम्यग्ज्ञान माना गया है ।