+ सम्यक्त्व का स्वरूप -
यथा वस्तु तथा ज्ञानं संभवत्यात्मनो यत: ।
जिनैरभाणि सम्यक्त्वं तत्क्षमं सिद्धिसाधने ॥16॥
अन्वयार्थ : यथा वस्तु तथा आत्मनः ज्ञानं यतः संभवति (तत्) सम्यक्त्वं जिनैः अभाणि, तत् सिद्धिसाधने क्षमं (भवति)
वस्तु जिस रूप में है, उसको उसी रूप में जानना आत्मा को जिस कारण से होता है, उसको जिनेन्द्र देव ने सम्यक्त्व कहा है । वह सम्यक्त्व आत्मसिद्धि का साधन है ।