+ परिणामों (भावों) के उत्तर-भेद -
द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ॥2॥
अन्वयार्थ : उक्त पाँच भावों के क्रम से दो, नौ, अठारह, इक्‍कीस और तीन भेद हैं ॥२॥
Meaning : (These are of) two, nine, eighteen, twenty-one, and three kinds respectively.

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

संख्‍यावाची दो आदि शब्‍दों का द्वन्‍द्व समास करके पश्‍चात् उनका भेद शब्‍द के साथ स्‍वपदार्थ में या अन्‍यपदार्थ में समास जानना चाहिए । जब स्‍वपदार्थ में समास करते हें तब औपशमिक आदि भावों के दो, नौ, अठारह, इक्‍कीस और तीन भेद हैं ऐसा सम्‍बन्‍ध कर लेते हैं । यद्यपि पूर्व सूत्र में औपशमिक आदि पद की षष्‍ठी विभक्ति नहीं है तो भी अर्थवश विभक्ति बदल जाती है । और जब अन्‍य पदार्थों में समास करते हैं तब विभक्ति बदलने का कोई कारण नहीं रहता । सूत्र में इनकी विभक्ति का जिस प्रकार निर्देश किया है तदनुसार सम्‍बन्‍ध हो जाता है । सूत्रमें 'यथाक्रम' वचन यथासंख्‍या के ज्ञान कराने के लिए दिया है । तथा - औपशमिक भाव के दो भेद हैं, क्षायिक के नौ भेद हैं, मिश्र के अठारह भेद हैं, औदयिक के इक्‍कीस भेद हैं और पारिणामिक के तीन भेद हैं ।

यदि ऐसा है तो औपशमिक के दो भेद कौन-से हैं ? इस बात का ज्ञान कराने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं -
राजवार्तिक :

1-2. द्वि नव आदि शब्दों का इतरेतरयोगार्थक द्वन्द्व समास है ।

प्रश्न – इतरेतरयोग तुल्ययोग में होता है किन्तु यहाँ तुल्ययोग नहीं है क्योंकि द्वि आदि शब्द संख्येय प्रधान हैं तथा एकविंशति शब्द संख्याप्रधान।

उत्तर –
निमित्तानुसार द्वि आदि शब्द भी संख्याप्रधान हो जाते हैं जैसे राजा स्वयं समय-समय पर मन्त्री को प्रधानता देता है।

प्रश्न – तर्क से कैसा ही समाधान हो जाय पर व्याकरण शास्त्र में स्पष्ट कहा है कि दो से 19 तक के अंक संख्येय प्रधान ही होते हैं तथा बीस आदि कभी संख्याप्रधान और कभी संख्येयप्रधान । यदि दो आदि शब्द भी कदाचित् संख्यावाची हों तो बीस आदि के समान ही इनकी स्थिति हो जायगी ऐसी दशा में 'विंशतिर्गवाम्' की तरह सम्बन्धी में षष्ठी विभक्ति और स्वयं में एकवचनान्त प्रयोग होना चाहिए। व्याकरण में ही जो 'द्वयेकयोः' यह संख्याप्रधान प्रयोग देखा जाता है वह संख्यार्थक नहीं है किन्तु जिसके अवयव गौण हैं ऐसे समुदाय के अर्थ में है, जैसे कि 'बहुशक्तिकिटक वनम्' - शक्तिशाली शूकरों वाला वन ।

उत्तर –
संख्याप्रधान होने पर भी इन्हें संख्येय विषयक मान लेते हैं। 'भावप्रत्यय के बिना भी गुणप्रधान निर्देश हो जाता है' यह नियम है। इस तरह दो आदि शब्द जब संख्येय प्रधान हो गये और एकविंशति शब्द भी संख्येय प्रधान तब तुल्ययोग होने से द्वन्द्व-समास होने में कोई बाधा नहीं है। भेद शब्द से द्विआदि शब्दों का स्वपदार्थ प्रधान समास है। विशेषणविशेष्य समास में 'दो नव आदि ही भेद' ऐसा स्वपदार्थप्रधान निर्देश हो जाता है।

प्रश्न – 'द्वियमुनम्' आदि में पूर्वपदार्थप्रधान समास होता है, अतः द्वि आदि शब्दों को विशेष्य और भेद-शब्द को विशेषण मानने में भेद शब्द का पूर्वनिपात होना चाहिये ? ।

उत्तर –
सामान्योपक्रम में विशेष कथन होने पर वह नियम लागू होता है । 'के?' कहने से 'द्वे यमुने' यह उत्तर मिलता है पर 'यमने' यह कहने पर दो शब्द निरर्थक हो जाता है। परन्तु यहां बहुत होने से सन्देह होता है - 'भेदाः' यह कहने पर 'कति' यह सन्देह बना रहता है और 'द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रयः' कहने पर 'के ते?' यह सन्देह रहता है अतः उभयव्यभिचार होने से विशेषण विशेष्य भाव इष्ट है। दो आदि गुणवाचक हैं अतः विशेषण हैं । अथवा 'दो आदि हैं भेद जिनके' इस प्रकार अन्यपदार्थप्रधान भी समास किया जा सकता है। संख्या शब्दों का विशेष्य होने पर भी 'सर्वनामसंख्ययोरुपसंख्यानम्' सूत्र से पूर्व निपात हो जायगा। पूर्वसूत्र में कहे गये औपशमिक आदि का अर्थवश विभक्ति परिणमन कराके 'औपशमिकादीनाम्' के रूप में सम्बन्ध कर लिया जायगा।

3. भेद शब्द का सम्बन्ध प्रत्येक में कर लेना चाहिये, जैसे कि 'देवदत्त, जिनदत्त, गुरुदत्त को भोजन कराओ' यहां भोजन का सम्बन्ध प्रत्येक से हो जाता है। 'यथाक्रमम्' शब्द दो आदि का निर्देशानुसार औपशमिक आदि भावों से क्रमशः सम्बन्ध सूचित करता है ।