+ तीसरी नदी की दिशा -
शेषास्त्वपरगाः॥22॥
अन्वयार्थ : किन्‍तु शेष नदियाँ पश्चिम समुद्र को जाती हैं ॥२२॥
Meaning : The rest are the western rivers.

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

दो-दो नदियोंमें जो शेष नदियाँ हैं वे बहकर पश्चिम समुद्रमें मिली हैं। 'अपरगाः' पद का अर्थ अपर समुद्र को जाती है यह है। उनमें-से पद्म तालाबसे उत्‍पन्‍न हुई और पूर्व तोरणद्वारसे निकली हुई गंगा नदी है। पश्चिम तोरणद्वारसे निकली हुई सिन्‍धु नदी है तथा उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई रोहितास्‍या नदी है। महापद्म तालाबसे उत्‍पन्‍न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकली हुई रोहित नदी है तथा उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई हरिकान्‍ता नदी है। तिगिंछ तालाबसे उत्‍पन्‍न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकली हुई हरित नदी है। और उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई सीतोदा नदी है। केसरि तालाबसे उत्‍पन्‍न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकली हुई सीता नदी है त‍था उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई नरकान्‍ता नदी है। महापुण्‍डरीक तालाबसे उत्‍पन्‍न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकली हुई नारी नदी है। तथा उत्तर तोरणद्वारसे निकली हुई रूप्‍यकूला नदी है। पुण्‍डरीक तालाबसे उत्‍पन्‍न हुई और दक्षिण तोरणद्वारसे निकली हुई सुवर्णकूला नदी है। पूर्व तोरणद्वारसे निकली हुई रक्‍ता नदी है और पश्चिम तोरणद्वारसे निकली हुई रक्‍तोदा नदी है।

अब इनकी परिवार-नदियोंका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
राजवार्तिक :

1. पद्महृद के पूर्व तोरणद्वार से गंगा नदी निकली है। वह पाँच सौ योजन पूर्व की ओर जाकर गंगा कूट से 523 6/19 दक्षिणमुख जाती है। स्थूल मुक्तावली की तरह 100 योजन धारावाली 6 1/4 योजन विस्तृत आधे योजन गहरी यह आगे 60 योजन लंबे चौड़े 10 योजन गहरे कुड में गिरती है। फिर दक्षिण तरफ से निकलकर खंडकप्रपात गुहा से विजयार्ध को लांघकर दक्षिण-भरतक्षेत्र को प्राप्त करके पूर्वमुखी होकर लवणसमुद्र में मिल जाती है।

2. पद्महृद के पश्चिम तोरण से सिन्धु नदी निकलती है। वह 500 योजन आगे जाकर सिन्धु कूट से टकराकर सिन्धुकुण्ड में गिरती हुई तमिस्र गुहा से विजयार्ध होती हुई पश्चिम लवणसमुद्र में मिलती है। गंगाकुण्ड के द्वीप के प्रासाद में गंगादेवी और सिन्धुकुण्डवर्ती द्वीप के प्रासाद में सिन्धु देवी रहती है । हिमवान् पर्वत पर गंगा और सिन्धु के मध्य में दो कमल के आकार के द्वीप हैं। इनके प्रासादों में क्रमशः बला और लवणा नाम की एक पल्यस्थिति वाली देवियाँ रहती हैं ।

3. पद्महृद के ही उत्तर द्वार से रोहितास्या नदी निकली है । यह 267 6/19 योजन उत्तर की तरफ जाकर श्रीदेवी के कुण्ड में गिरती है। फिर कुण्ड के उत्तर द्वार से निकलकर उत्तर की तरफ बहती हुई शब्दवान् वृत्तवेदाढ्य को घेरकर पश्चिम की ओर बहकर पश्चिम लवण समुद्र में मिलती है।

4. रोहित् नदी महाहिमवान् पर्वतवर्ती महापद्महृद के दक्षिण तोरणद्वार से निकलकर पूर्वलवण समुद्र में मिलती है।

5. हरिकान्ता नदी महाहिमवान् पर्वतवर्ती महापद्महृद के उत्तर तोरणद्वार से निकलकर रोहित की तरह पहाड़ की तलहटी में जाकर कुण्ड में गिरती है। फिर उत्तर की ओर बहकर विकृतवान् वृत्तवेदाढ्य को आधे योजन दूर से घेरकर पश्चिम मुख हो पश्चिम समुद्र में गिरती है।

6. हरित् नदी निषध पर्वतवर्ती तिगिंछ हृद के दक्षिण तोरण द्वार से निकलकर पूर्व की ओर बहकर कुण्ड में गिरती है । फिर पूर्व समुद्र में मिलती है ।

7. सीतोदा नदी तिगिंछ-हृद के उत्तर तोरण द्वार से निकलकर कुण्डमें गिरती है फिर कुण्डके उत्तर तोरण द्वार से निकलकर देवकुरु के चित्र विचित्रकूट के बीच से उत्तर-मुख बहती हुई मेरु-पर्वत को आधे-योजन दूर से ही घेरकर विद्युत्प्रभ को भेदती हुई अपर विदेह के बीच से बहती हुई पश्चिम-समुद्र में मिलती है ।

8. सीता नदी नीलपर्वतवर्ती केसरी-हृद के दक्षिण तोरणद्वार से निकलकर कुंड में गिरती हुई माल्यवान् को भेदती हुई पूर्वविदेह में बहकर पूर्वसमुद्र में मिलती है।

9. नरकान्ता नदी केसरी-हृद के उत्तर तोरणद्वार से निकलकर गन्धवान् वेदाढ्य को घेरती हुई पश्चिम समुद्र में मिलती है।

10. नारी नदी रुक्मि पर्वत के ऊपर स्थित महापुण्डरीक-हृद के दक्षिण तोरणद्वार से निकलकर गन्धवान् वेदाढ्य को घेरती हुई पूर्वसमुद्र में गिरती है।

11. इसी महापुण्डरीक-हृद के उत्तर तोरणद्वार से रूप्यकूला नदी निकलती है और माल्यवान् वृत्तवेदाढ्य को घेरकर पश्चिम समुद्र में गिरती है ।

12. शिखरी पर्वत पर स्थित पुण्डरीक-हृद के दक्षिण तोरणद्वार से सुवर्णकूला नदी निकलती है और माल्यवान् वृत्तवेदाढ्य को घेरती हुई पूर्वसमुद्र में मिलती है।

13. इसी पुण्डरीक हृद के पूर्वतोरणद्वार से रक्ता नदी निकली है और यह गंगा नदी की तरह पूर्वसमुद्र में मिलती है ।

14. इसी पुण्डरीक-हृद के पश्चिम तोरणद्वार से रक्तोदा नदी निकलती है और पश्चिम समुद्र में मिलती है। ये सभी नदियाँ अपने-अपने नाम के कुण्डों में गिरती हैं और उसमें नदी के नामवाली देवियाँ रहती हैं। गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तोदा नदियां कुटिलगति होकर बहती हैं शेष ऋजुगति से। सभी नदियों के दोनों किनारे वनखंडों से सुशोभित हैं।