
सर्वार्थसिद्धि :
शेष सब देवों का संग्रह करने के लिए सूत्र में 'पर' शब्द का ग्रहण किया है । परम सुख का ज्ञान कराने के लिए अप्रवीचार पद का ग्रहण किया है। प्रवीचार वेदना का प्रतिकार मात्र है। इसके अभाव में उनके सदा परम सुख पाया जाता हैं । आदि के निकाय के देवों के दस भेद कहे हैं। अब उनकी सामान्य और विशेष संज्ञा ज्ञान कराने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं - |
राजवार्तिक :
कल्पातीत-प्रेवेयकादि वासी देव प्रवीचार से रहित हैं । प्रवीचार कामवेदना का प्रतीकार है। इनके काम-वेदना ही नहीं होती। अतः ये परमसुख का सदा अनुभव करते हैं । |