सप्तति-र्मोहनीयस्य ॥15॥
अन्वयार्थ : मोहनीय की उत्‍कृष्‍ट स्थिति सत्‍तर कोटाकोटि सागरोपम है ॥१५॥
Meaning : Seventy sâgaropama kotîkotî is the maximum duration of the deluding karmas.

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

इस सूत्र में 'सागरोपमकोटीकोटय: परा स्थिति:' पद की अनुवृत्ति होती है। यह भी उत्‍कृष्‍ट स्थिति मिथ्‍यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्‍तक जीव के जानना चाहिए । इतर जीवों के आगम के अनुसार ज्ञान कर लेना चाहिए ।

नाम और गोत्रकर्म की उत्‍कृष्‍ट स्थिति का ज्ञान कराने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं -
राजवार्तिक :

संज्ञिपंचेन्द्रिय पर्याप्तक के मोहनीय की उत्कृष्ट-स्थिति 70 कोड़ाकोड़ी सागर है। पर्याप्तक, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों के क्रमशः एक सागर, पच्चीससागर, पचाससागर और सौ सागर स्थिति है । अपर्याप्तक एकेन्द्रिय के पल्योपम के असंख्येयभाग कम स्वपर्याप्तक की उत्कृष्टस्थिति तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियों के पल्योपम के संख्यातभाग से कम स्वपर्याप्तक की स्थिति-प्रमाण उत्कृष्ट-स्थिति समझनी चाहिये । असंज्ञि-पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के एक हजार सागर तथा अपर्याप्तक के पल्योपम के संख्यातभाग कम एक हजार सागर स्थिति है । अपर्याप्तक-संज्ञी के अन्त:कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है।