विंशतिर्नाम-गोत्रयो: ॥116॥
अन्वयार्थ : नाम और गोत्र की उत्‍कृष्‍ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम है ॥१६॥
Meaning : Twenty sâgaropama kotîkotî is the maximum duration of the name-karma and the statusdetermining karma.

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

'सागरोपमकोटीकोटय: परा स्थिति:' पद की अनुवृत्ति होती है। यह भी उत्‍कृष्‍ट स्थिति मिथ्‍यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्‍तक जीव के जानना चाहिए । इतर जीवों के आगम के अनुसार जान लेना चाहिए।

अब आयु कर्म की उत्‍कृष्‍ट स्थिति क्‍या है यह बतलाने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं -
राजवार्तिक :

संज्ञिपंचेन्द्रिय पर्याप्तक के नाम और गोत्र की उत्कृष्ट-स्थिति 20 कोडाकोड़ी सागर है।
  • एकेन्द्रिय पर्याप्तक के 3 सागर,
  • द्वीन्द्रिय पर्याप्तक के २५ २/७ सागर,
  • त्रीन्द्रिय पर्याप्तक के ५० २/७ सागर,
  • चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक के १०० २/७ सागर,
  • असंज्ञिपंचेन्द्रिय पर्याप्तक के १००० २/३ सागर और
  • संज्ञिपंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थिति है ।
एकेन्द्रियअपर्याप्तक के पल्य के असंख्येय भाग से कम सागर तथा द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक असंज्ञियों के पल्योपम के संख्यात भाग से कम स्वपर्याप्तक की स्थिति ही उत्कृष्ट-स्थिति समझनी चाहिए।