णिम्मल-झाण-परिट्ठिया, कम्म-कलंक डहेवि
अप्पा लद्धउ जेण परु, ते परमप्प णवेवि ॥1॥
सब कर्ममल का नाश कर अर प्राप्त कर निज-आतमा
जो लीन निर्मल ध्यान में नम कर निकल परमातमा ॥
अन्वयार्थ : [जेण] जिन्होंने [णिम्मल-झाण-परिट्ठिया] निर्मल ध्यान में स्थित होकर [कम्म-कलंक डहेवि] कर्मरूपी कलंक को जलाकर [परु अप्पा लद्धउ] परमात्म पद को प्राप्त कर लिया है, [ते परमप्प णवेवि] उन परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ ।