घाइ-चउक्कह किउ विलउ, अणंत-चउक्क्क-पदिट्ठु
तहिं जिणइंदहँ पय णविवि, अक्खमि कव्वु सुइट्ठु ॥2॥
सब नाश कर घनघाति अरि अरिहंत पद को पा लिया
कर नमन उन जिनदेव को यह काव्यपथ अपना लिया ॥
अन्वयार्थ : [घाइ-चउक्कह किउ विलउ] चार घातिया कर्मों का नाश करके [अणंत-चउक्क्क-पदिट्ठु] अनन्त चतुष्टय को प्रकट किया है, [तहिं जिणइंदहँ पय] उन जिनेन्द्र देव के चरणों को [णविवि] नमस्कार करके [कव्वु सुइट्ठु] अत्यन्त इष्ट काव्य को [अक्खमि] कहता हूँ ।