पंचाध्यायावयवं मम कर्तुर्ग्रंथराजमात्मवशात् ।
अर्थालोकनिदानं यस्य वचस्तं स्तुवे महावीरम् ॥1॥
अन्वयार्थ : पाँच अध्यायों में बंटे हुए जिस ग्रन्थराज को मैं स्वयं बनाने वाला हूं, उस ग्रन्थ-राज के बनाने में जिन महावीर स्वामी के वचन मेरे लिये पदार्थों के प्रकाश करने में मूल कारण हैं, उन महावीर स्वामी का मैं स्तवन करता हूं ।