शेषानपि तीर्थकराननन्तसिद्धानहं नमामि समम्‌ ।
धर्माचार्याध्यापकसाधुविशिष्टान् मुनीश्वरान् वन्दे ॥2॥
अन्वयार्थ : महावीर स्वामी के सिवाय और भी जितने ( वृषभादिक २३ ) तीर्थंकर हैं। तथा अनादि काल से होनेवाले अनन्त सिद्ध हैं। उन सबको एक साथ मैं नमस्कार करता हूँ। धर्माचार्य , उपाध्याय, और साधु, इन तीन श्रेणियों में विभक्त मुनीश्वरों को भी मैं वन्दना करता हूं ।