जीयाज्जैनं शासनमनादिनिधनं सुवन्द्यमनवद्यम् ।
यदपि च कुमतारातीनदयं धूमध्वजोपमं दहति ॥3॥
अन्वयार्थ : जो जैन शासन अनादि-अनन्त है। अतएव अच्छी तरह वन्दने योग्य है । दोषों से सर्वथा मुक्त है । साथ में खोटे मत रूपी शत्रुओं को अग्नि की तरह जलाने वाला है, वह सदा जयशील बना रहे ।