अत्रान्तरंगहेतुर्यद्यपि भावः कवेर्विशुद्धतरः ।
हेतोस्तथापि हेतुः साध्वी सर्वोपकारिणी बुद्धिः ॥5॥
अन्वयार्थ :
ग्रंथ बनानेमें यद्यपि अन्तरंग कारण कवि का अति विशुद्ध भाव है, तथापि उक्त कारण का भी कारण सब जीवों का उपकार करने वाली श्रेष्ठ बुद्धि है ।