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गुणांश ही गुणपर्याय है
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सन्ति गुणांशा इति ये गुणपर्यायास्त एव नाम्नापि ।
अविरुद्धमेतदेव हि पर्यायाणामिहांशधर्मत्वात् ॥61॥
अन्वयार्थ :
जितने भी गुणांश हैं वे ही गुणपर्याय कहलाते हैं । यह बात अविरुद्ध सिद्ध है कि अंश स्वरूप ही पर्यायें होती हैं ।