
ननु ते विकल्पमात्रमिह यदकिंचित्करं तदेवेति ।
एतावतापि न गुणो हानिर्वा तद्विना यतस्त्विति चेत् ॥93॥
अन्वयार्थ : शंकाकार कहता है कि यह सब तुम्हारी कल्पना मात्र है और वह व्यर्थ है । उत्पादादि त्रय के मानने से न तो कोई गुण ही है और इसके न मानने से कोई हानि भी नहीं दीखती ?