
चित्स्वभावभरभावितभावा-
भावभावपरमार्थतयैकम् ।
बन्धपद्धतिमपास्य समस्तां
चेतये समयसारमपारम् ॥92॥
अन्वयार्थ : [चित्स्वभाव-भर-भावित-भाव-अभाव-भाव-परमार्थतया एकम्] चित्- स्वभाव के पुंज द्वारा ही अपने उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य किये जाते हैं — ऐसा जिसका परमार्थ स्वरूप है, इसलिये जो एक है ऐसे [अपारम् समयसारम्] अपार समयसार को मैं, [समस्तां बन्धपद्धतिम्] समस्त बन्धपद्धति को [अपास्य] दूर करके अर्थात् कर्मोदय से होनेवाले सर्व भावों को छोड़कर, [चेतये] अनुभव करता हूँ ।