(अनुष्टुभ्)
वृत्तं ज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं सदा ।
एकद्रव्यस्वभावत्वान्मोक्षहेतुस्तदेव तत् ॥106॥
अन्वयार्थ : [एक द्रव्यस्वभावत्वात्] ज्ञान द्रव्यस्वभावी ( – जीवस्वभावी – ) होने से [ज्ञानस्वभावेन] ज्ञान के स्वभाव से [सदा] सदा [ज्ञानस्य भवनं वृत्तं] ज्ञान का भवन बनता है;[तत्] इसलिये [तद् एव मोक्षहेतुः] ज्ञान ही मोक्ष का कारण है ।