प्रणम्य शुद्धचिद्रूपं सानन्दं जगदुत्तमं ।
तल्लक्षणादिकं वच्मि तदर्थी तस्य लब्धये ॥1॥
सानन्द सर्वोत्तम त्रिजग, चिद्रूप शुद्ध को कर नमन ।
कहता उसी के लक्षणादि, तदर्थी तद्लब्धि हित ॥१॥
अन्वयार्थ : निराकुलतारूप अनुपम आनंद भोगने वाले, समस्त जगत में उत्तम, शुद्ध चेतन्य स्वरूप को नमस्कार कर उसकी प्राप्ति का अभिलाषी, मैं उसके लक्षणआदि का प्रतिपादन करता हूँ ।