श्रीमन्तं त्रिजगन्नाथं सर्वज्ञम् सर्वदर्शिनम् ।
सर्वयोगीन्द्रवन्द्या ?? वन्दे विश्वार्थदीपकम् ॥1॥
अन्वयार्थ : जो अनन्तचतुष्टयरूप अन्तरङ्ग और अष्टप्रातिहार्यरूप बहिरंग लक्ष्मी से युक्त हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं, समस्त योगिराजों के द्वारा जिनके चरण वन्दनीय हैं तथा जो विश्व के पदार्थों को प्रकाशित करने के लिये दीपक हैं ऐसे तीनलोक के नाथ जिनेन्द्रभगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥