जित्वा यो ध्यानयोगेन वैरिदेवकृतान् परान् ।
घोरोपसर्गजालांश्च महावाताम्बुवर्षणै:॥10॥
चकार केवलज्ञानं व्यक्तं विश्वाग्रदीपकम् ।
स विश्वविघ्नहन्ता मे पार्श्वोsस्तु विघ्नहानये ॥11॥
अन्वयार्थ : जिन्होंने अपने बैरी देव ( कमठ के जीव ) द्वारा प्रचण्डवायु और वर्षाजन्य किये गये भयंकर उपसर्गों को अपने ध्यान के प्रभाव से जीतकर तीनकाल की पर्यायों से युक्त समस्त द्रव्यों को प्रकाशित करने वाले केवलज्ञान को व्यक्त-प्राप्त किया है, जिनके प्रभाव से संसार के समस्त विघ्न नष्ट हो जाते है ऐसे पार्श्वनाथ भगवान मेरे विघ्नों की शान्ति करने वाले हो अर्थात्‌ इस ग्रंथ के निर्माण (या टीका) करने में आने वाले मेरे सम्पूर्ण विघ्नों को नष्ट करे ॥ १०-११॥