मोहकामाक्षशत्रूणां भङ्क्त्वा बाल्येsपि यो मुखम् ।
वैराग्यज्ञानमुत्पाद्य दुर्लभां संयमश्रियम् ॥8॥
गृहीत्वाहत्य कर्मारीन् शुक्लध्यानासिनाकरोत् ।
मुक्तिस्त्रीं स्ववशे नौमि नेमिनाथं तमूर्जितम् ॥9॥
अन्वयार्थ : बाल्य अवस्था में ही जिन्होंने मोह, काम और इन्द्रिय रूप शन्रुओं का मुख तोड कर वैराग्य और ज्ञान के बल पर दुर्लभसंयमरूपी लक्ष्मी को धारण किया, शुक्लध्यानरूप तलवार से जिन्होंने कर्म शत्रुओं का सर्वथा विनाश कर मुक्तिरूपी स्त्री को अपने स्वाधीन बना लिया है उन विशिष्ट बलशाली नेमिनाथ भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ ॥८-९॥