विश्वप्रकाशिमहिमानममानमेकम्
ओमक्षराद्यखिलवाङमयहेतुभूतम् ।
यं शंकर सुगतमीशमनीशमाहु:
अर्हन्तमूर्जितमह तमहं नमामि ॥१॥
अन्वयार्थ : तीनों लोकों और तीनों कालों में रहने वाले समस्त पदार्थों को युगपत् प्रकाशित करने में समर्थ महिमा के धारी, अनन्त गुणों से युक्त होने से जिन्हे 'अपरिमित' ऐसा कहा गया है अखण्ड चैतन्यगुण की अपेक्षा से जो एक हैं 'ॐ' इस अक्षर सहित सम्पूर्ण वाङ्मय के कारणभूत है -- "अर्हन्त, अशरीरी , आचार्य, उपाध्याय तथा मुनि-- इन पाँचो परमेष्ठियों के नामों के प्रथम अक्षरों से निष्पन्न ॐकार' पचपरमेष्ठी है", --इनकी स्वर-सन्धि से निमित्त ॐकार आदि सम्पूर्ण वाङ्मय का उपदेशकत्व होने से ॐकारादि सम्पूर्ण वाङ्मय के कारण है, ऐसे जो कोई सम्पूर्ण जीवों के लिए सुख के उपदेशक होने से 'शंकर' है, परमपद को प्राप्त होने से जो 'सुगत' है, परम उत्कृष्ट ऐश्वर्य से युक्त होने से जो 'ईश' है अपने से अधिक न होने से जो 'अनीश' हैं, अत्यन्त प्रकाशमान उन परमात्मा अर्हन्त भट्टारक को गणधरदेवादि 'योगीन्द्र' कहते है -- इस युग के प्रारम्भ में हुए उन सर्वज्ञ परमात्मा को मैं योगीन्दुदेव नमस्कार / वन्दना करता हूँ ।