+ कुछ पद्यों के द्वारा विषयसुख मे निमित्तभूत धनोपार्जन के प्रयत्नो के प्रकारों का निरूपण करते है -- -
भ्रात: ! प्रभातसमये त्वरित किमर्थम्‌,
अर्थाय चेत्‌ स च सुखाय ततः स सार्थ: ।
यद्येवमाशु कुरु पुण्यमतोऽर्थसिद्धि:,
पुण्यैर्विना न हि भवन्ति समीहितार्था: ॥2॥
अन्वयार्थ : हे भाई ! सुर्योदयकाल में शीघ्रगमन किस कारण से करते हो ? यदि अर्थ के कारण (करते हो, तो) वह अर्थ विषयसुख का निमित्त है (और) उस 'विषयसुख की प्राप्ति से स्व-अर्थ की सिद्धि होती है' - यदि ऐसा तुम्हारा चिन्तन है, तो शीघ्र पुण्यानुष्ठान करो । इस पुण्योपार्जन से तुम्हे इष्ट पदार्थ की सिद्धि होगी । विविध प्रकार के अभ्युदय के सुखों को देने वाले पुण्य के उदय के बिना वांछित पदार्थ प्राप्त नही होते हैं ।