दंसण-णाणपहाणो असंखदेसो हु मुत्तिपरिहीणो ।
सगहियदेहपमाणो णायव्वो एरिसो अप्पा ॥17॥
आप-प्रमान प्रकास प्रमान, लोक प्रमान, सरीर समान ।
दरसन ज्ञानवान परधान, परतैं आन आतमा जान ॥17॥
अन्वयार्थ : [हु] निश्चयनय से आत्मा [दसण-णाणपहाणो] दर्शन और ज्ञानगुण प्रधान है, [असंखदेसो] असंख्यात प्रदेशी है, [मुत्तिपरिहीणो] मूर्ति से रहित है, [सगहियदेहपमाणो] अपने द्वारा गृहीत देह-प्रमाण है -- [एरिसो] ऐसे स्वरूपवाला [अप्पा] आत्मा [णायव्वो] जानना चाहिए।