पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
मोक्षमार्गतत्फलस्वरूपनिरूपणोपन्यासोऽयम् । 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इति वचनात् मार्गस्तावच्छुद्धरत्नत्रयं, मार्गफल-मपुनर्भवपुरन्ध्रिकास्थूलभालस्थललीलालंकारतिलकता । द्विविधं किलैवं परमवीतरागसर्वज्ञशासने चतुर्थज्ञानधारिभिः पूर्वसूरिभिः समाख्यातम् । परमनिरपेक्षतया निजपरमात्मतत्त्वसम्यक्-श्रद्धानपरिज्ञानानुष्ठानशुद्धरत्नत्रयात्मकमार्गो मोक्षोपायः, तस्य शुद्धरत्नत्रयस्य फलं स्वात्मोपलब्धिरिति । (पृथ्वी) क्वचिद् व्रजति कामिनीरतिसमुत्थसौख्यं जनः क्वचिद् द्रविणरक्षणे मतिमिमां च चक्रे पुनः । क्वचिज्जिनवरस्य मार्गमुपलभ्य यः पंडितो निजात्मनि रतो भवेद् व्रजति मुक्ति मेतां हि सः ॥९॥ यह, मोक्षमार्ग और उसके फल के स्वरूप-निरूपण की सूचना (-उन दोनों के स्वरूप के निरूपण की प्रस्तावना) है । 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' ऐसा (शास्त्र का) वचन होने से, मार्ग तो शुद्ध-रत्नत्रय है और मार्गफल मुक्तिरूपी स्त्री के विशाल भाल-प्रदेश में शोभा-अलङ्काररूप तिलकपना है (अर्थात् मार्गफल मुक्तिरूपी स्त्री को वरण करना है) । इस प्रकार वास्तव में (मार्ग और मार्गफल ऐसा) दो प्रकार का, चतुर्थ ज्ञानधारी ( -मनःपर्ययज्ञान के धारण करनेवाले) पूर्वाचार्यों ने परमवीतराग सर्वज्ञ के शासन में कथन किया है । निज परमात्मतत्त्व के सम्यक्श्रद्धान-ज्ञान-अनुष्ठानरूप शुद्धरत्नत्रयात्मक मार्ग परम निरपेक्ष होने से मोक्ष का उपाय है और उस शुद्ध-रत्नत्रय का फल स्वात्मोपलब्धि (-निज शुद्ध आत्माकी प्राप्ति) है ॥२॥ (कलश-रोला)
मनुष्य कभी कामिनी के प्रति रति से उत्पन्न होनेवाले सुख कीओर गति करता है और फिर कभी धनरक्षा की बुद्धि करता है । जो पण्डित कभी जिनवर के मार्ग को प्राप्त करके निज आत्मा में रत हो जाते हैं, वे वास्तव में इस मुक्ति को प्राप्त होते हैं ॥९॥
कभी कामिनी रति सुख में यह रत रहता है । कभी संपती की रक्षा में उलझा रहता ॥ किन्तु जो पण्डितजन जिनपथ पा जाते हैं । हो जाते वे मुक्त आतमा में रत होकर ॥९॥ |