जचंदछाबडा :
इस संसार में प्राणी विषयसुखों को सेवन करते हैं, जिनसे कर्म बँधते हैं और उससे जन्म-जरा-मरणरूप रोगों से पीड़ित होते हैं; वहाँ जिनवचनरूप औषधि ऐसी है जो विषय-सुखों से अरुचि उत्पन्न करके उसका विरेचन करती है । जैसे गरिष्ठ आहार से जब मल बढ़ता है, तब ज्वरादि रोग उत्पन्न होते हैं और तब उसके विरेचन को हरड़ आदि औषधि उपकारी होती है, उसीप्रकार उपकारी है । उन विषयों से वैराग्य होने पर कर्मबन्धन नहीं होता और तब जन्म-जरा-मरण रोग नहीं होते तथा संसार के दु:खों का अभाव होता है । इसप्रकार जिनवचनों को अमृत समान मानकर अंगीकार करना ॥१७॥ |