+ दर्शन-ज्ञान-चारित्र में स्थित की वंदना -
दंसणणाणचरित्ते तवविणये णिच्चकालसुपसत्था
एदे दु वंदणीया जे गुणवादी गुणधराणं ॥23॥
दर्शनज्ञानचारित्रे तपोविनये नित्यकालसुप्रस्वस्था: ।
ऐते तु वन्दनीया ये गुणवादिन: गुणधराणाम्‌ ॥२३॥
ज्ञान दर्शन चरण में जो नित्य ही संलग्न हैं ।
गणधर करें गुण कथन जिनके वे मुनीजन वंद्य हैं ॥२३॥
अन्वयार्थ : [जे] जो (मुनि) [दंसणणाणचरित्ते] दर्शन, ज्ञान, चरित्र, [तवविणये] तप और विनय में [णिच्चकाल] सदाकाल [सुपसत्था] लीन रहते हैं तथा अन्य [गुणधराणं] गुणधारक मनुष्यों के [गुणवादी] गुणों का वर्णन करते हैं [एदे] वे [वंदणीया] नमस्कार करने योग्य हैं ।

  जचंदछाबडा