जचंदछाबडा :
विशुद्ध अर्थात् पच्चीस मलदोषों से रहित निरतिचार सम्यक्त्व से कल्याण की परम्परा अर्थात् तीर्थंकर पद पाते हैं, इसलिए यह सम्यक्त्व रत्न लोक में सब देव, दानवों और मनुष्यों से पूज्य होता है । तीर्थंकर प्रकृति के बंध के कारण सोलह-कारण भावना कही हैं, उनमें पहली दर्शन-विशुद्धि है, वही प्रधान है, यही विनयादिक पंद्रह भावनाओं का कारण है, इसलिए सम्यग्दर्शन के ही प्रधानपना है ॥३३॥ |