फासुयमग्गेण दिवा जुंगतरप्पेहिणा सकज्जेण
जंतूणि परिहरंतेणिरियासमिदी हवे गमणं ॥11॥
अन्वयार्थ : [फासुयमग्गेण] प्रासुक मार्ग से [दिवा] दिन में [जुंगतरप्पेहिणा] चार हाथ प्रमाण देखकर [सकज्जेण] अपने कार्य के लिए [जंतूणि] एकेंद्रियादि प्राणियों को [परिहरं] पीड़ा नहीं देते हुए संयमी का [हवे गमणं] जो गमन है [तेणिरियासमिदी] वह ईर्यासमिति है। ।