पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदाप्पपसंसविकहादी
वज्जित्ता सपरहियं भासासमिदी हवे कहणं ॥12॥
अन्वयार्थ : [पेसुण्ण] पैशून्य, [हास] हँसी, [कक्कस] कठोरता, [परणिंदाप्पपसंस] परनिन्दा, अपनी प्रशंसा और [विकहादी] विकथा आदि को [वज्जित्ता] छोड़कर [सपरहियं] अपने और पर के लिए [भासासमिदी] भाषा समिति [हवे कहणं] पूर्वक बोलना है।