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क्षितिशयन
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फासुयभूमिपएसे अप्पमसंथादिदम्हि पच्छण्णे
दंडं धणुव्व सेज्जं खिदिसयणं एयपासेण ॥32॥
अन्वयार्थ :
जीवबाधारहित, अल्पसंस्तर रहित, असंयमी के गमनरहित गुप्तभूमि के प्रदेश में दण्ड के समान अथवा धनुष के समान एक कर्वट से सोना क्षितिशयन मूलगुण है।