+ अस्नान -
ण्हाणादिवज्जणेण ये विलित्तजल्लमलसदेसव्वंगं
अण्हाणं घोर गुणं संजमदुगपालयं मुणिणो ॥31॥
अन्वयार्थ : स्नान आदि के त्याग कर देने से जल्ल, मल और पसीने से सर्वांग लिप्त हो जाता है। स्नान नहीं करने से इन्द्रियों का निग्रह होता है तथा प्राणियों को बाधा नहीं पहुँचने से प्राणी संयम भी पलता है।