+ बैर के निमित्त -
रायबंधं पदोसं च हरिसं दीणभावयं
उस्सुगत्तं भयं सोगं रदिमरिंद च वोसरे ॥44॥
अन्वयार्थ : राग का अनुबंध, प्रकृष्ट द्वेष, हर्ष, दीनभाव, उत्सुकता, भय, शोक, रति, और अरति इन सब वैर के निमित्तों का समाधि धारक त्याग करता है ।