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किसी के साथ बैर नहीं
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खमामि सव्व जीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे
मित्ती मे सव्वभूदेसु वेरं मज्झं ण केणवि ॥43॥
अन्वयार्थ :
समाधि धारक सोचता है सभी जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सभी जीव मुझे क्षमा करें, सभी जीवों के साथ मेरा मैत्री भाव है, मेरा किसी के साथ वैर भाव नहीं है ।