
आदा हु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्ते य
आदा पच्चक्खाणे आदा में संवरे जोए ॥46॥
अन्वयार्थ : निश्चित रूप से मेरा आत्मा ही ज्ञान में है, मेरा आत्मा ही दर्शन में और चारित्र में है, प्रत्याख्यान में है और मेरा आत्मा ही संवर तथा योग में है । स्वभाव का, स्वरूप का त्याग नहीं होता, विभाव का त्याग होता है ।