+ आलोचना किनसे करनी चाहिए -
णाणम्हि दंसणम्हि य तवे चरित्ते य चउसुवि अकंपो
धीरो आगमकुसलो अपरिस्साई रहस्साणं ॥57॥
अन्वयार्थ : जो ज्ञान, दर्शन, तप और चारित्र इन चारों में भी अविचल हैं, धीर हैं, आगम में निपुण हैं, और रहस्य अर्थात् गुप्त दोषों को प्रकट नहीं करने वाले हैं वे आचार्य आलोचना सुनने के योग्य हैं ।