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आपृच्छा कब कहते हैं ?
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आदावणादिगहणे सण्णा उब्भामगादिगमणे वा
विणयेणायरियादिसु आपुच्छा होदि कायव्वा ॥135॥
अन्वयार्थ :
आतापन आदि के ग्रहण करने में, आहार आदि के लिए जाने में अथवा अन्य ग्राम आदि में जाने के लिए विनय से आचार्य आदि से पूछकर कार्य करना चाहिए ।